

भारत के संविधान के अनुच्छेद-46 में सौंपे गए कर्तव्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य दुर्बल वर्गाें के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि के लिए संविधान के अनुच्छेद-244 एवं संविधान के अनुच्छेद 275(1) में विहित दायित्वों के निर्वहन के लिए संविधान के अनुच्छेद-164 के अंर्तगत विहित प्रावधान के अनुरूप छत्तीसगढ़ राज्य में आदित जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग का गठन किया गया है। छत्तीसगढ़ शासन,सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय महानदी भवन, नवा रायपुर, अटल नगर दिनांक 9 दिसंबर 2022 की अधिसूचना क्रमांक एफ 1-1/2022/एक(1) अनुसार आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के नाम में संशोधन कर आदिम जाति विकास विभाग,पिछड़ा वर्ग, एवं अल्पसंख्यक विकास विभाग तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग किया गया है।
भारत के संविधान में व्यक्त सामाजिक न्याय के संकल्प ने अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को समानता का अधिकार से संपन्न करते हुए उनकी प्रगति के रास्त खोल दिए है।
संविधान की मंशा के अनुरूप आदिवासियों और अनुसूचित जाति के शैक्षणिक विकास एवं आर्थिक उन्नति की योजनाएं बनी। उन्हे क्रियान्वित कर संबंधित वर्गाें को विकास -यात्रा में शामिल करने के निरंतर प्रयास हुए। इन प्रयासों के परिणाम भी सामने आए। इन वर्गाें के लिए मानव अधिकार सूचकांक में अपेक्षाकृत सुधार परिलक्षित हुआ है। साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा है। शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदायों की विशिष्ट उपलब्धियां रेखांकित की जाने लगी है। सामाजिक आर्थिक विकास के फलस्वरूप इन वर्गों की प्रतिष्ठा में लगातार वृद्धि हुई है। शासन-प्रशासन में इनकी सहभागिता सम्मानजनक रूप से बढ़ी है। फिर भी विकास की यह यात्रा अभी और लंबी है एवं प्रगति के अनगिनत सोपान तय किये जाने है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद-46 में सौंपे गए कर्तव्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य दुर्बल वर्गाें के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि के लिए संविधान के अनुच्छेद-244 एवं संविधान के अनुच्छेद 275(1) में विहित दायित्वों के निर्वहन के लिए संविधान के अनुच्छेद-164 के अंर्तगत विहित प्रावधान के अनुरूप छत्तीसगढ़ राज्य में आदित जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग का गठन किया गया है। छत्तीसगढ़ शासन,सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय महानदी भवन, नवा रायपुर, अटल नगर दिनांक 9 दिसंबर 2022 की अधिसूचना क्रमांक एफ 1-1/2022/एक(1) अनुसार आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग के नाम में संशोधन कर आदिम जाति विकास विभाग,पिछड़ा वर्ग, एवं अल्पसंख्यक विकास विभाग तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग किया गया है।
भारत के संविधान में व्यक्त सामाजिक न्याय के संकल्प ने अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को समानता का अधिकार से संपन्न करते हुए उनकी प्रगति के रास्त खोल दिए है।
संविधान की मंशा के अनुरूप आदिवासियों और अनुसूचित जाति के शैक्षणिक विकास एवं आर्थिक उन्नति की योजनाएं बनी। उन्हे क्रियान्वित कर संबंधित वर्गाें को विकास -यात्रा में शामिल करने के निरंतर प्रयास हुए। इन प्रयासों के परिणाम भी सामने आए। इन वर्गाें के लिए मानव अधिकार सूचकांक में अपेक्षाकृत सुधार परिलक्षित हुआ है। साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा है। शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदायों की विशिष्ट उपलब्धियां रेखांकित की जाने लगी है। सामाजिक आर्थिक विकास के फलस्वरूप इन वर्गों की प्रतिष्ठा में लगातार वृद्धि हुई है। शासन-प्रशासन में इनकी सहभागिता सम्मानजनक रूप से बढ़ी है। फिर भी विकास की यह यात्रा अभी और लंबी है एवं प्रगति के अनगिनत सोपान तय किये जाने है।
छत्तीसगढ़ राज्य में 11 लोकसभा (5 सामान्य, 4 अनुसूचित जनजाति, 2 अनुसूचित जाति) हैं, एवं 90 विधानसभा क्षेत्र हैं। विधान सभा क्षेत्रों में 44 क्षेत्र (34 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति) सुरक्षित हैं।
राज्य की कुल जनसंख्या (जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार) 255.45 लाख है। इनमें से अनुसचित जनजातियों की जनसंख्या 78.22 लाख है, एवं अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 32.47 लाख है।
राज्य में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु आदिवासी उपयोजना की अवधारणा जारी है। प्रमुख जनजाति गोंड तथा इसकी उपजातियां-माड़िया, मुरिया, दोरला आदि हैं। इसके अतिरिक्त उरांव, कंवर, बिंझवार, बैगा, भतरा, कमार, हल्बा, संवरा, नगेशिया, मझवार, खरिया और धनवार जनजाति काफी संख्या में हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य में 5 विशेष पिछड़ी जनजातियां, बैगा, कमार, हिल कोरबा, बिरहोर, अबूझमाड़िया, निवासरत हैं। इनके आर्थिक सामाजिक तथा क्षेत्रीय विकास को दृष्टिगत रखते हुए राज्य में 6 पिछड़ी जनजाति विकास अभिकरण गठित है।
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